अपनी परछाईयों में अगर मैं ही खो जाऊँ
क्या ढूँढ लेगी मेरी रोशनी यूँही मुझको मुझ में
या उसके लिए सपनो का एक रोशनदान बनाऊँ
पर मैं कागज का बेमतलब सा कोई फूल नहीं
के बिन कहानी बिन खुशबू के मैं यूँही खो जाऊँ
मैं हूँ भिनी सी वो अनोखी अनसुनी गमक
के हवा के मुस्काती साँसो में मैं यूँ सज जाऊँ
बारिश की बूंदो में मैं सौंधी सी महक छुपाऊँ
आसमान से रंग लेके मैं दरिया में मिल जाऊँ
उस तेज दरिया के किस्सों में भी मैं बस जाऊँ
उन कहानीयों के हिस्सों में भी मैं रो-हस पाऊँ
पर उन में शामिल होके भी मुझको मुझ में ही पाऊँ
इस कथानक की कथा बादलों की स्याही में लिख जाऊँ
मैं हूँ अब भी जब है रोशनी और वह परछाई भी
रोशनी की परछाई और परछाई की रोशनी में मैं खुद को पाऊँ
/ 16
: 290
Copyright © 2025 One Life To Live. All Rights Reserved






No comments:
Post a Comment
Please let me know how you felt. I am all ears. Post a comment!