महकी हुई सन्नाटों में वो चाँद आहें भरता है आज भी
महफ़िलों के उन चँद रंगों को वो निहारता है आज भी
हैं ये दिन हसीन और शामें जवाँ अब भी मगर
नर्म मुस्कानों में वह बातें याद करता है आज भी
थे कुछ अनकहे से लफ्ज़ अब भी बाकी शायद
उन लफ्ज़ों की शिकायत निगाहों से करता है आज भी
नज़र की नज़ाकत चाहे पलकों से घिरे रहें मगर
तारों को रोशनी के किस्से बेबाकी से सुनाता है आज भी
किस्तों में बादलों से मिलना होता है कभी कभी मगर
उनसे समंदर का हाल-ए-दिल वो पूछ लेता है आज भी
वह लहरें जो बेक़रारी में क़रार ढूँढती थीं तब
उनके शिकवे में दास्तानों की गूँज सुनता है आज भी
कुछ कहानीयों में राहों का आगाज़ रहता होगा शायद
हर कहानी के मोड़ में जाने क्या राह तलाशता है आज भी
रास्तों मे अक्सर भटकते होंगे राही मगर
पर क्या भटका राही मंजिलो से ख़फ़ा रहता है आज भी?
Copyright © 2025 One Life To Live. All Rights Reserved
Copyright © 2025 One Life To Live. All Rights Reserved
No comments:
Post a Comment
Please let me know how you felt. I am all ears. Post a comment!