टिमटिमाती तारों की
उन रोशनी की हर रेशे से पुछो,
या लहराती हुई हवा की
खुसबू में छिपे हर नज़्म से पुछो,
हैं किस्से कई जगहों के
हर मोड में शामिल मगर,
हैं खानाबदोश वो, उन किस्सों की
मंजिल का पता ना उनसे पुछो ।
कहीं सपनें नींदों में छुपती हैं,
पर बादल अपने सपने
अपनी आवाज में लिये चलते हैं,
कहीं आशाएँ मंजिलों में तय रह जाती हैं,
पर लहरें अपनी आशाएँ
अपनी रूह में बसाये चलती हैं,
हैं रास्तें कई, दिशायें कई,
बिन ठीकानों के मंजर कई मगर,
हैं खानाबदोश वो, वह अपना घर
अपने दिल में लिये चलते हैं ।
उनकी ज़िक्र में थोड़ी आशाएँ
हमने भी रूह में बसा ली,
उनकी निगाहों के उजालों में थोड़े सपने
हमने भी गीतों में बुन ली,
उनकी खुशबू की लहरों में
एक-आध पंक्तियां हमने भी चुन ली,
उन मुस्काती नज़ाकत में थोड़ी रोशनी
हमने भी रेशों में पिरो ली।
हैं खानाबदोश वो, कुछ बात तो है उन राहों में,
हमने भी खानाबदोशी से दोस्ती कर ली ।
उन रोशनी की हर रेशे से पुछो,
या लहराती हुई हवा की
खुसबू में छिपे हर नज़्म से पुछो,
हैं किस्से कई जगहों के
हर मोड में शामिल मगर,
हैं खानाबदोश वो, उन किस्सों की
मंजिल का पता ना उनसे पुछो ।
कहीं सपनें नींदों में छुपती हैं,
पर बादल अपने सपने
अपनी आवाज में लिये चलते हैं,
कहीं आशाएँ मंजिलों में तय रह जाती हैं,
पर लहरें अपनी आशाएँ
अपनी रूह में बसाये चलती हैं,
हैं रास्तें कई, दिशायें कई,
बिन ठीकानों के मंजर कई मगर,
हैं खानाबदोश वो, वह अपना घर
अपने दिल में लिये चलते हैं ।
उनकी ज़िक्र में थोड़ी आशाएँ
हमने भी रूह में बसा ली,
उनकी निगाहों के उजालों में थोड़े सपने
हमने भी गीतों में बुन ली,
उनकी खुशबू की लहरों में
एक-आध पंक्तियां हमने भी चुन ली,
उन मुस्काती नज़ाकत में थोड़ी रोशनी
हमने भी रेशों में पिरो ली।
हैं खानाबदोश वो, कुछ बात तो है उन राहों में,
हमने भी खानाबदोशी से दोस्ती कर ली ।

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